Jaundice Symptoms and Causes

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Jaundice

पीलिया एक ऐसा रोग है जो एक विशेष प्रकार के वायरस और किसी कारणवश शरीर में पित्त यानि रक्त में बिलीरुबिन (Bilirubin Disorder) की मात्रा बढ़ जाने से होता है। इसमें मरीज को पीला पेशाब होता है। उसके नाखून, त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ जाता है और मरीज को काफी कमजोरी, कब्ज, जी मिचलाना, सिरदर्द, भूख न लगना आदि शिकायत होने लगती है।

यह बहुत ही सूक्ष्‍म विषाणु (Virus) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं, लेकिन जब यह गंभीर हो जाता है तो मरीज की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं। जिन वायरस से यह होता है उसके आधार पर मुख्‍यतः पीलिया तीन प्रकार का होता है (Types of Jaundice) वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नॉन ए व नॉन बी। शरीर में एसिडिटी के बढ़ जाने, काफी दिनों तक मलेरिया रहने, पित्त नली में पथरी अटकने, ज्यादा शराब पीने, अधिक नमक और तीखे पदार्थों के सेवन से और खून में रक्तकणों की कमी होने से भी पीलिया (Piliya) रोग होता है।

यह रोग ज्‍यादातर ऐसे स्‍थानों पर होता है जहां के लोग व्‍यक्तिगत व आसपास की सफाई पर कम ध्‍यान देते हैं अथवा बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं देते। भीड़-भाड़ वाले इलाकों में भी यह ज्‍यादा होता है। वायरल है पटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नॉन व नॉन बी एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति के नजदीकी सम्‍पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होते हैं। पीलिया रोग से पीड़ित व्‍यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है। ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंख, नाखून या शरीर आदि पीले नही दिख रहे हों लेकिन यदि वे इस रोग से ग्रस्‍त हो तो अन्‍य रोगियो की तरह ही रोग को फैला सकते हैं। वायरल हैपटाइटिस बी खून व खून से निर्मित प्रदार्थो के आदान प्रदान एवं यौन क्रिया द्वारा भी फैलता है।

आंख के सफेद भाग का पीला हो जाना
आमाशय में सूजन होना
जी मिचलाना
त्वचा का रंग पीला हो जाना
दाहिनी पसलियों के नीचे भारीपन आना और दर्द होना
पित्त के कारण मल का रंग फीका या सफेद हो जाना
पेट में दर्द होना
भूख नहीं लगना
वजन लगातार कम होना
शाम में थका-थका महसूस करना और 102 डिग्री के आसपास बुखार रहना
जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं 120 दिन के साइकिल में एक नेचुरल प्रक्रिया के तहत टूटती है तो वेस्ट बाइ प्रोडक्ट के रुप में बिलीरुबिन (Bilirubin Disorder) का उत्पादन होता है। बिलीरुबिन के जरिए शरीर की सारी गंदगी लिवर से छन कर बाहर निकलती है। यह गंदगी पेशाब और मल के जरिए बाहर निकलती है। अगर लिवर में संक्रमण है या फिर रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा 2.5 से ज्यादा हो जाती है तो लिवर के गंदगी साफ करने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है और इसी परिस्थिति में पीलिया की बीमारी हो जाती है।

पीलिया रोग के अन्य कारण (Other Reasons & Causes of Jaundice)
अगर किसी संक्रमण से लाल रक्त कोशिका अपनी सामान्य प्रक्रिया से पहले ही टूटने लगती है तो रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ने लगती है। इस परिस्थिति को प्री हेपटिक जॉन्डिस कहते हैं। मलेरिया, स्किल सेल एनीमिया, थेलीसीमिया में और कई आनुवांशिक कारणों से भी रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा अचानक बढ़ने लगती है जिससे पीलिया (Piliya) रोग होता है।
अगर किसी कारण से लिवर को नुकसान पहुंचा है तो लिवर से बिलीरुबिन बनने की क्षमता ही कम हो जाती है। इसे इंट्रा-हेपाटिक जॉन्डिस भी कहा जाता है। वायरल हैपेटाइटिस (Viral Hepatitis), लीवर का अल्कोहलिक होना (Alcohol), तेज बुखार (Fever), लीवर कैंसर (Liver Cancer), गलत दवाओं के सेवन और पैरासिटामोल (Medicine Side effects) के ज्यादा सेवन से भी इंट्रा-हेपाटिक जॉन्डिस होते हैं। मोटापा में लीवर साइरोसिस होने का खतरा रहता है। जिससे इंट्रा-हेपाटिक जॉन्डिस की संभावना रहती है।
गॉल ब्लाडर में पत्थर, पैनक्रियाज का सही ढंग से काम नहीं करना, पैनक्रियाज कैंसर या फिर गॉल ब्लाडर के कैंसर में भी लिवर द्वारा बाइ प्रोडक्ट बिलीरुबिन को शरीर से निकालने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। नतीजा रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा काफी बढ़ जाती है और गंभीर पीलिया रोग हो जाता है।
डिहाइड्रेशन होने पर आई वी फ्लूयड्स (IV fluids in case of dehydration)
एंटी बायोटिक्स (antibiotics)
एंटी वायरल दवा (antiviral medicines)
ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusions)
स्टेरॉयड्स (steroids)
कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और नवजात के लिए फोटोथेरेपी (chemotherapy/radiation therapy & phototherapy for newborns)
परहेज और आराम (Diet, care and rest)
पीलिया के मरीज को डॉक्टर बिस्‍तर पर आराम करने की सलाह देते हैं और घूमने- फिरने से मना करते हैं। डॉक्‍टर की सलाह से ऐसे मरीजों को भोजन में प्रोटीन और कार्बोज वाले प्रदार्थो का सेवन करना चाहिये। नींबू, संतरे तथा अन्‍य फलों का रस भी इस रोग में फायदेमंद होता है। वसा युक्‍त तले-भुने भोजन का सेवन इसमें हानिकारक है। चावल, दलिया, खिचड़ी, उबले आलू, शकरकंदी, चीनी, ग्‍लूकोज, गुड़, चीकू, पपीता, छाछ, मूली के सेवन से पीलिया जल्दी खत्म होता है।

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