एलर्जी
एलर्जी अथवा अधिहृषता वह स्थिति है जिसमें हमारा प्रतिरक्षी तंत्र (immune system) अत्यंत संवेदनशील हो जाता है और किसी भी साधारण कारक के प्रति अत्यंत तीव्र शारीरिक प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है जो रोग का रूप ले लेती है. वसंत ऋतु में होने वाला ‘हे फीवर’ या ‘एकज़ीमा’ अथवा त्वचा पर उठने वाले लाल या सफेद खुजलिनुमा दाने, एलर्जी का ही रूप है.
एलर्जी के कारण (Causes Of Allergies In Hindi)
कई लोग एलर्जी से इतने ग्रस्त हो जाते हैं कि हर वस्तु जैसे छोटा सा धूलकण अथवा कोई पर्फ्यूम (perfume), किसी जानवर का बाल, उन्हें हर चीज़ से एलर्जी हो जाती है. अब तो नौबत इतनी बिगड़ चुकी है कि लोगों को गेहूँ खाने से भी एलर्जी है. यही नही ये तो सब जानते हैं आजकल कुछ बच्चों को जन्म से ही दूध से एलर्जी होती है. इस विषम हालत में व्यक्ति क्या करे? हालाँकि छोटे बच्चों में निम्न स्वास्थ के कारण बहुत अलग हैं और इसका संबंध उसके पैदा होने से पहले माता- पिता के आहार-विहार और माता के गर्भावस्था में शरीर की हालत और जीवनचर्या पर निर्भर करता है. परंतु इस लेख में हम केवल आम तौर पर होने वाली एलर्जी और उनके आयुर्वेद द्वारा उपचार के बारे में बात करेंगे.एलर्जी के काई कारक होते हैं. जिस तरह कि पराग, किसी घरेलू अथवा अन्य जानवर का बाल, कोई केमिकल अथवा मानव- रचित रसायन, धूल, कई उपजीवी (parasites) और कई बार मौसम में आए हुए परिवर्तन भी इस रोग के कारक बन जाते हैं.
आयुर्वेद में ‘आम’ (acidic toxins-resulting from undigested food) को ही एलेर्जी का कारक माना जाता है. यह ‘आम’ पक्वाशय से लेकर किसी भी अन्य अंग (ख़ासकर जिनमें पहले से कमज़ोरी हो) में अपना घर बना लेता है. इस कारण इसके द्वारा उत्पन्न रोग और उनके लक्षण भी अनेक प्रकार के होते हैं. आम के कारण विषाक्त होने के कारण रक्त में अथवा पित्त में प्रादुर्भाव प्रकट हो जाते हैं. इसके कारण कफ में भी विकृति अथवा उग्रता उत्पन्न हो सकती है. हर प्रकार के दोष प्रधानता के अनुसार विभिन्न लक्षणों द्वारा एलर्जी उत्पन्न होती है.
एलर्जी के लक्षण (Symptoms Of Allergy In Hindi)
ये तो सर्वविदित सत्य है कि एलर्जी में आम तौर पर जुकाम जैसे ही लक्षण पाए जाते हैं. बहती नाक, गले में खराश, आँखों से पानी आना, त्वचा पर दाने आना- ये सब एलेर्जी में पाया जाता है. कई लोगों में पेचिश, दस्त भी होने लगते हैं और दिल की धड़कन का असंतुलित रूप ले लेती है.
ज़्यादातर ऐसा प्रतीत होता है कि व्यक्ति को नज़ला अथवा ज़ुकाम हो गया है परंतु अधिक गंभीर रूप में दमा, साँस लेने में कष्ट, विभिन्न प्रकार की दर्द, शरीर के कई अंगों में कमज़ोरी, सूजन, दाने आना अन्य लक्षण हैं.
दोष की विकृति एवं एलर्जी (Imbalance of Doshas And Allergy In Hindi)
वास्तव में यह ‘हे फीवर’ एक कफ-पित्त की विकृति द्वारा उत्पन्न हुआ विकार है.
वात के प्रकोप में प्रधान रूप से सिर में दर्द, अनिद्रा और व्यग्रता का अनुभव होता है.
पित्त के प्रकोप में नाक अथवा गले से पीले रंग का श्लेष्मा आत है, आँखों और त्वचा में जलन, बुखार जैसा लगना- ये सब रोगी को प्रतीत होता है. कफ दोष के कुपित होने पर सफेद बलगम बनता है जो शरीर में भारीपन और मंदता के रूप में भी प्रकट होता है. यदि साइनस में अवरोध या रुकावट है तो सिर में इस हिस्सों में हल्के दर्द का अनुभव हो सकता है.
आम उपचार (General Treatment Of Allergy According To Ayurveda In Hindi)
नास्य का प्रयोग इन सब स्थितियों में सर्वथा महत्वपूर्ण है. अनु तैल के 3-4 बूँद दोनो नासिका में 2 समय रोज़ डालना अत्यंत लाभकारी है. मुलेठी, बिल्व, अगरु, कंटकारी, नागरमोठ द्वारा सिद्ध किया हुआ औषधीय तिल तैल का उपयोग भी दोनो नासिका में किया जा सकता है.
वात एवं कफ को संतुलन में लाने के लिए यह प्रयोग किया जा सकता है – 20 मिलीग्राम त्रिकटु चूर्ण (सोंठ, पिप्पली, काली मिर्च), 250 मिलीग्राम तुलसी के पत्ते, 10 मिलिग्राम लौंग, कपूर और सूखा धनिया लेकर इनको अच्छी तरह पीसकर मिश्रण बनाएँ. इस मिश्रण का २ ग्राम शहद के साथ रोज़ सेवन करें.
पथ्यापथ्य (Ayurvedic Dietary Guidelines Helpful In Alleviating Allergies In Hindi)
गरिष्ट भोजन का सेवन ना करें. पनीर और इससे बने खाद्य पदार्थ, दही कफ को बढ़ाकर जठराग्नि पर दुष्प्रभाव डालते हैं जिस कारण इनका प्रयोग सर्वथा वर्जित है.
हल्के एवं सुपाच्य भोजन जैसे लौकी, परवल, मूँग की दाल, दलिया इत्यादि का सेवन हितकर रहता है.
दोष की विकृति के अनुसार औषधि प्रयोग (Home Remedies According to Dosha vitiation In Ayurveda In Hindi)
पित्त का निदान
पित्त की विकृति को ठीक करने के लिए निम्न औषधि का प्रयोग किया जा सकता है: मुलेठी, छोटी
इलायची और चंदन युक्त चाय का प्रयोग करना हितकर है. चाय बनाने के लिए बराबर मात्रा में सूखे मसालों को लेकर उनमें चार गुना पानी मिलाएँ. इस मिश्रण को तब तक उबालिये जब तक ये एक-चौथाई न रह जाए.
बेर के सूखे पाउडर को इस्तेमाल करने से भी पित्त का शमन होता है.
गरम पानी में यूक्लीपटस के तेल के दो बूँद डालकर उसकी वाष्प लेना अत्यंत हितकर है. नारियल तेल की नास्य दिन में दो बार- एक बार सुबह उठकर और दूसरा रात को सोने से पहले अवश्य लें.
वात का निदान
मेथी, अदरक और शहद युक्त औषधि: 2 चम्मच मेथी दाना, 1 लीटर पानी में मिलाएँ और आधे घंटे तक इसे उबाल कर छान लें. 2 चम्मच अदरक का पेस्ट बनाएँ और उसे उसका रस पूरी तरह से निचोड़ लें.
इस रस को उबले हुए पानी में मिलाएँ. इसमें एक चम्मच शहद मिलाएँ. इसे अच्छी तरह घोल लें और रोज़ इसका 1 गिलास सेवन करें.
कफ का निदान
औषधि: 50 ग्राम कपूर, लौंग और 1 ग्राम तुलसी का सेवन 40 दिन तक करना चाहिए.
गिलोय, तुलसी, लौंग का काढ़ा बनाकर उसमें कपूर डालकर 2 हफ्ते तक रोज़ सेवन करना चाहिए.
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यदि आप किसी योग प्रशिक्षक द्वारा कुंजल क्रिया सीख लें और हर 3-4 दिन बाद इसका अभ्यास करे तो आपको चमत्कारी लाभ देखने को मिलेगा. योग के अनुसार सभी प्रकार के एलेर्जी के कारक वास्तव में हमारे पेट में घर बनाए न होते हैं. कुंजल द्वारा ये स्वतः ही निकल जाते हैं. ना केवल इस क्रिया द्वारा शरीर की शुद्धि होती है अपितु अवसाद और दुखकारी यादें भी मन से निकल जाती हैं. (यदि आपको ग्लकोमा या अधिमंत की दिक्कत है अथवा कोई बड़ा ऑपरेशन हुआ हो तो यह क्रिया नही कर सकते. इन्हें करने के लिए अन्य किसी प्रकार के घातक रोग ना हो, ये अनिवार्य है. योगाचार्य की सलाह लेकर ही छठकर्म का अभ्यास करें.) और यदि जल नेती भी साथ में सीख ली जाए और ठीक से पानी को साइनस से प्राणायाम द्वारा निकाल दिया जाए तो इस प्रकार के रोग सपने में भी नही होंगे. इस क्रिया को करने के बाद यदि देसी गाय के दूध से बने शुद्ध देसी घी अथवा बादाम रोगन या अनु तेल से नास्य लिया जाए तो यह अत्यंत हितकारी है. आपको बहुत जल्द ही स्वस्थता का अनुभव होगा.
यदि अनुलोम विलोम का नित्य अभ्यास किया जाए तो इस रोग के उपचार को चार गुना ताक़त मिल जाती है. कपालभाति प्राणायाम योग्य आचार्य से सीखकर इसका हर रोज़ अभ्यास करने से श्वसन तंत्र मजबूत हो जाता है.ध्यान रहे यदि ग़लत अभ्यास किया तो स्वस्थ की हानि भी हो सकती है. इसलिए केवल कुशल प्राणायाम के आचार्य से सामने बैठकर सीखें, सोशियल मीडीया से नही.
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