अष्टांग योग में प्राणायाम का चौथा स्थान है।
प्राणवायु के आवागमन पर नियंत्रण प्राणायाम कहलाता है। श्वसन गति 1 मिनट में 16-18 बार होती है इस दर को अपने प्रयास से कम करना अर्थात ऑक्सीजन को शरीर में देर तक रोकना।
जानें कोनसी ऋतु में हमारा खान-पान व रहन-सहन कैसा हो।
हम सभी जानते है कि हमारे शरीर के समस्त रोग गलत खान-पान व रहन-सहन की वजह से होते है क्योंकि हर ऋतु में हमारा बल और पाचन शक्ति बदलती रहती है।
हमारे देश में 6 ऋतुएं होती है और हर ऋतु के दो महीने होते है।
जैसे-
1. शिशिर- जनवरी – फरवरी
2. बसन्त- मार्च-अप्रेल
3. ग्रीष्म- मई – जून
4. वर्षा- जुलाई – अगस्त
5. शरद- सितम्बर – अक्टूबर
6. हेमन्त- नवम्बर – दिसम्बर
1. शिशिर ऋतु ( जनवरी-फरवरी )
इस ऋतु में वातावरण में रूखापन रहता है। शीतकालीन बारिश भी होती है। इस मौसम में बल उत्तम रहता है। इसमें कडवे, शीतल व वायु उत्पन्न करने वाले खाद पदार्थों का परहेज करना चाहिए। इसमें मीठे व चिकनाई युक्त खाद पदार्थ जैसे दूध, घी, बादाम, अखरोट, मूंगफली, उडद, गुड, चना, तिल आदि चीजों का सेवन हितकर होता है तथा बिल्कुल भोजन न करना, देर से करना, ठण्डे स्थान पर रहना, ठण्डा पानी पीना हानिकारक है। तैल मालिश करना चाहिए।
2. बसन्त ऋतु ( मार्च-अप्रेल )
इस ऋतु में पाचन शक्ति कमजोर रहती है। इस मौसम में कफ जन्म रोग उत्पन होने की सम्भावना बढ जाती है। इस ऋतु में भारी भोजन, तली हुई चीजें, खटटा, दिन में सोना आदि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इस ऋतु में शरीर का बल मध्यम रहता है। इसमे हरे पत्ते व मूंग की दाल का सेवन करना चाहिए। खाना सर्दी के मौसम की अपेक्षा कम खाना चाहिए। प्रात काल घूमना, योग, दौडना हितकर है।
3. ग्रीष्म ऋतु ( मई-जून )
इस ऋतु में गर्म हवाएं चलती है तथा धूप व गर्म हवाएं हमारे शरीर का स्नेह भाग व पानी का अवशोषण कर लेती है तथा शरीर का बलहीन हो जाता है।
धूप में नहीं निकले
भूख प्यास को अनदेखा न करें
खाली पेट घर से नहीं निकले
अधिक परिश्रम नहीं करें
तथा मिर्च, मसाला, नमकीन, शराब, बेसन, अरहर, उडद की दाल का सेवन ना करें।
आहार में मीठा, ठण्डा, घी, दूध, चावल, आम, सन्तरा, तरबूज, खरबूज, किशमिश, मुन्नका, लाल टमाटर, पुदीना, गुलकन्द आदि का सेवन हितकर होता है।
4. वर्षा ऋतु ( जुलाई-अगस्त )
इस मौसम में जठराग्नी कमजोर रहती है। शरीर का बलहीन रहता है। पुराने अन्न जैसे- जौ, चावल का सेवन करना चाहिए। इस ऋतु में सीलन युक्त स्थानों से दूर रहना चाहिए, पानी उबालकर पीना चाहिए, मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। नंगे पैर जमीन पर नहीं टहलना चाहिए। इस ऋतु में चिकना मीठा खटटा वायु पैदा ना करने वाले भोजन का सेवन हितकर होता है तथा बासी भोजन ना करें।
5. शरद ऋतु ( सितम्बर-अक्टूबर )
इस ऋतु में शरीर का बल मध्यम रहता है। इस ऋतु में दही, दिन में सोना, सीधे हवा का सेवन, भरपेट खाना, शराब का सेवन, अम्लीय पदार्थ, जलीय जन्तुओं का मांस, तेल, वसा का सेवन अहितकर होता है तथा चावल, दूध की लस्सी, आंवला, मुन्नका, नारियल का सेवन हितकर होता है।
6. हेमन्त ऋतु ( नवम्बर - दिसम्बर )
इस ऋतु में बल उत्तम रहता है। इस मौसम में पाचन शक्ति उत्तम रहती है इसलिए भारी खादय पदार्थां को पचाने की क्षमता रहती है। इसमें अम्लीय पदार्थ, दूध, दही, मलाई, मीठे खाद पदार्थ, खीर, नारियल हितकर होते है। इसमें उनी वस्त्र धारण करना चाहिए तथा तैल की मालिश, व्यायाम, धूप का सेवन हितकर होता है। गुनगुने जल से स्नान करना चाहिए।
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