प्रदूषण का प्रभाव
फेफडे छोटी गोलाकार स्पंजी थैलियों से बने होते हैं। इन थैलियों को एल्वियोलाइ सैक्स कहते हैं। ये सांस लेने के दौरान फूल जाती हैं और ऑक्सीजन को रक्त में समाहित करने में मदद करती हैं। लेकिन प्रदूषण एल्वियोलाइ सैक्स के लचीलेपन को नष्ट कर देता है और कई बार यह कैंसर का भी कारण बन जाता है। ऑक्सीजन की कमी से शरीर की सभी कार्यप्रणालियों पर बुरा असर पडता है।
क्या हैं इसके लक्षण
ऑक्सीजन की कमी
थकान
सिरदर्द
अस्थमा और श्वास की समस्याएं
खांसी और जकडन
साइनस
प्राणायाम के लाभ
फेफडों की सफाई के लिए प्राणायाम एक बेहतरीन तकनीक है। जब आप सांस सही तरीके से लेना सीख जाएंगे तो लंबा और स्वस्थ जीवन बिताने से आपको कोई रोक नहीं पाएगा। सही तरीके और गहरा श्वास लेने से फेफडों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलता है, जो फेफडों को साफ करने में मदद करता है। हममें से तमाम लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि सांस छोडने के बाद भी वायु कुछ मात्रा में फेफडों में शेष रह जाती है। इसे वायु की अवशेष मात्रा कहते हैं। यह जहरीली वायु होती है, जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और निलंबित कण होते हैं। इस जहरीली वायु को शरीर से हटाने के लिए प्राणायाम बहुत प्रभावकारी होता है।
भस्त्रिका प्राणायाम
आराम की मुद्रा में बैठ जाएं- मसलन सुखासन, वज्रासन या पद्मासन। पीठ व गर्दन सीधी रखें। नाक से सांस छोडें और खींचें। आंखें बंद रखें।
गहरी सांस लेते समय हाथों को ऊपर उठाएं।
हाथों को कंधों के समानांतर नीचे लाते हुए जोर से सांस छोडें। सांस पर ध्यान केंद्रित रखें और गिनती गिनें। इसके बाद नाक के दोनों छिद्रों को बंद करें और कुछ सेकंड सांस रोकें।
समयावधि शुरुआत में अपनी क्षमता के मुताबिक अभ्यास करें। धीरे-धीरे 100 बार तक करें।
क्या हैं इसके लाभ
फेफडों से बार-बार सांस बाहर निकलने व भीतर जाने से पर्याप्त ऑक्सीजन मिलता है और जहरीली गैसें बाहर निकलती हैं। जिन्हें उच रक्तचाप व हृदय संबंधी समस्याएं हैं, उन्हें प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
कपालभाति
यह क्रिया नाडी को साफ और मस्तिष्क को शांत करती है। यह मानसिक कार्य करने के लिए मस्तिष्क को ताकत और ऊर्जा देने का काम करती है। यह क्रिया फेफडों की ब्लॉकेज खोलने में मदद करती है। नर्वस सिस्टम को मजबूत और पाचन क्रिया को दुरुस्त करने का भी काम करती है।
आराम की मुद्रा में बैठ जाएं। पीठ और गर्दन सीधी रखें।
सांस बाहर छोडने के दौरान पेट को झटके से अंदर की तरफ खींचें। इसके बाद सामान्य रूप से सांस लें। यह क्रिया कम से कम 5 मिनट तक करें।
अनुलोम-विलोम
अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक का दाहिना छिद्र बंद करें। अब नाक के बाएं छिद्र से धीरे-धीरे सांस खींचें जब तक कि फेफडों में ऑक्सीजन भर न जाएं। इस क्रिया को पूरक के नाम से जानते हैं। अब नाक के बाएं छिद्र को अनामिका और मध्यमा उंगली से बंद करें और दाएं छिद्र को खोलकर धीरे-धीरे सांस छोडें। इस क्रिया को रेचक कहते हैं। सांस तब तक बाहर छोडते रहें जब तक कि फफडे से वायु पूरी तरह निकल न जाए। नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचना और दाहिने छिद्र से सांस बाहर निकालना इस क्रिया का पहला चक्र हुआ। अब दाहिने छिद्र से सांस खींचें और बाएं छिद्र से सांस छोडें। यह दूसरा चक्र हुआ।
समयावधि
शुरुआत में अपनी क्षमता के मुताबिक इसका रोजाना कम से कम 3 मिनट तक अभ्यास करें। धीरे-धीरे रोजाना 15-20 मिनट तक करें। संभव हो तो इसे दिन में दो बार सुबह और शाम को जरूर करें। संपूर्ण शरीर और मस्तिष्क के शुद्धीकरण के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम एक बेहतरीन व्यायाम है। यह शरीर को रोगों से बचाने में मदद करता है और उसे भीतर से मजबूत बनाता है।
ध्यान रखें ये बातें
इसे आसान मुद्रा में बैठकर करें मसलन- पद्मासन, सिद्धासन या वज्रासन।
सांस नाक से ही लें, ताकि जो वायु अंदर लें, वह फिल्टर होकर भीतर जाए।
प्राणायाम के लिए साफ और शांत जगह चुनें। बेहतर होगा कि प्रात:काल जब पेट खाली हो तब करें।