मिरगी रोग (EPILEPSY) की योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा

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मिर्गी के रोग में जब दौरे पड़ते हैं तो रोगी के शरीर में खिंचाव होने उत्पन्न होने लगता है तथा रोगी के हाथ-पैर अकड़ने लग जाते हैं और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है। हाथ तथा पैर मुड़ जाते हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, आंखे फटी-फटी और पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा रोगी के मुंह से झाग निकलने लगता है।


कभी कभी मिर्गी के दौरे के समय रोगी का पेशाब और मल भी निकल जाता है। मिर्गी का दौरा कुछ समय के लिए पड़ता है और खत्म होते ही रोगी को बहुत गहरी नींद आ जाती है।

मिरगी रोग के कारण-

यह मस्तिष्क व केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का विकार है हमारा मस्तिष्क स्वाभाविक तरंगे उत्पन करता है जो संतुलित व व्यवस्थित होती है जिसकी वजह से मांसपेसियाँ कार्य करती है परन्तु इस रोग में वो तरंगे अनियंत्रित हो जाती है जिससे दौर पड़ते है इसके कई कारण हो सकते है जैसे:- आनुवांशिक, पैरासाईटस, बैक्टीरिया, वायरस, मस्तिक्षावरण शोथ, सिर में चोट, स्ट्रोक आदि


इस रोग की संभावना कब बढ़ जाती है-

दवाई भुलना, मानसिक तनाव, अनिद्रा, कैफीन, सर्दी, बुखार, जुखाम, हलकी तेज रोशनी, शुगर लेवल का कम होना, दवाइयों के दुष्प्रभाव आदि


मिरगी रोग में बरतें यह सावधानियाँ-

1. दवा समय पर दे

2. मानसिक तनाव न करे

3. धुम्रपान शराब गुटखा का सेवन बंद करे


मिरगी दोरा आने पर क्या करें- 

1. शांत रहें

2. रोगी को न हिलायें

3. मुह एक तरफ घुमा दें

4. जबरन मुह खोल कर कुछ न डालें

5. कपडे ढीले कर दें

6. जूता,प्याज सूंघाने की कोशिश न करें

7. पानी ना पिलायें


योग के लाभ-

 प्राणायाम, अनुलोम-विलोम से रोगी को काफी लाभ मिलता है

 

1. विकृत अंग पुनः ठीक होने लगता है

2. तंत्रिका तंत्र अपना कार्य सुचारू रूप से करने लग जाता है

3. मष्तिष्क के विकृत अंग में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन पहुचना शुरू हो जाती है

4. जिससे क्रेनियम तंत्रिका पूर्णरूप से रिलैक्स हो जाती है

5. प्राणायाम शारीरिक व मानसिक क्रिया को भी दूरस्त करता है


प्राकृतिक उपचार-

1. सिरोधारा

2. नस्य कर्म

3. सूर्य किरण चिकित्सा

4. रंग चिकित्सा

5. सूर्य किरण से आवेशित जल व तेल का प्रयोग


लाभदायक वनोशधी-

राहमी , ज्योतिषमति, वच,जटामांसी, शंखपुष्पि


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